दैनिक प्रतियोगिता हेतु विषय पश्चताप
रात के अंधेरे में एक बूढ़ा आदमी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा सुबक रहा था। उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे, जो उसके झुर्रियों भरे चेहरे को भिगो रहे थे। उसे अपने किए गए पापों का एहसास था, लेकिन क्या यह एहसास काफी था? क्या समय उसे माफ करेगा?
गाँव में रघुनाथ नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह अत्यंत स्वार्थी और लालची था। बचपन से ही उसके मन में धन-दौलत की भूख थी। वह चाहता था कि उसके पास सब कुछ हो—इज्जत, शोहरत और पैसा। इस लालच में उसने कई गलत काम किए।
रघुनाथ का एक छोटा भाई रामू था, जो सरल हृदय और ईमानदार था। उनके माता-पिता की मृत्यु के बाद, दोनों भाइयों को विरासत में एक बड़ा खेत मिला था। रामू चाहता था कि वे दोनों मिलकर खेत को सँवारें, लेकिन रघुनाथ की आँखों में लालच का अंधेरा छाया था।
एक दिन उसने रामू से कहा, "भाई, शहर में बहुत पैसा है। हम यह खेत बेचकर वहाँ व्यापार करेंगे और अमीर बन जाएंगे।"
रामू को यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया। वह अपने पूर्वजों की जमीन छोड़ना नहीं चाहता था। उसने रघुनाथ को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना।
जब रामू ने खेत बेचने से इनकार कर दिया, तो रघुनाथ के मन में एक खतरनाक योजना आई। उसने रामू को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया।
एक रात, जब रामू खेत में सो रहा था, रघुनाथ ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी। वह चाहता था कि यह एक हादसा लगे, इसलिए उसने लाश को गाँव के बाहर नदी में बहा दिया।
अगली सुबह, पूरे गाँव में हड़कंप मच गया। रामू का कोई पता नहीं था। सबने बहुत खोजबीन की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। रघुनाथ ने खूब रोने का नाटक किया, लेकिन उसकी आँखों में पश्चाताप का कोई चिह्न नहीं था।
कुछ दिनों बाद, उसने खेत बेच दिया और शहर चला गया। वहाँ जाकर उसने खूब पैसा कमाया और एक बड़ा व्यापारी बन गया।
बीस साल बीत गए। अब रघुनाथ बूढ़ा हो चुका था। उसके पास अपार धन-संपत्ति थी, लेकिन सुख-शांति नहीं थी। उसकी पत्नी का देहांत हो चुका था, और उसका बेटा उसे छोड़कर विदेश चला गया था।
रात को वह सो नहीं पाता था। जब भी वह आँखें बंद करता, उसे रामू की कराहने की आवाजें सुनाई देतीं। उसे लगता कि कोई अज्ञात शक्ति उसे सजा दे रही थी। वह डर के मारे काँप उठता और फिर पूरी रात जागकर बिताता।
एक दिन, एक साधु उसके घर आया। उसने रघुनाथ को देखते ही कहा, "बेटा, पाप का घड़ा जब भर जाता है, तो उसका फूटना निश्चित होता है।"
रघुनाथ के मन में कुछ टूट सा गया। उसने साधु के पैरों में गिरकर रोते हुए कहा, "मैंने अपने ही भाई का खून किया था। अब मैं चैन से नहीं जी सकता।"
साधु ने कहा, "पश्चाताप का एक ही मार्ग है—सत्य को स्वीकार करो और अपने पापों का प्रायश्चित करो।"
रघुनाथ गाँव लौटा और पंचायत के सामने अपने अपराधों को स्वीकार कर लिया। यह सुनकर पूरा गाँव सन्न रह गया। लेकिन कोई भी उसे माफ करने को तैयार नहीं था।
अब रघुनाथ के पास कुछ भी नहीं बचा था। उसने अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बाँट दी और मंदिर के द्वार पर बैठकर अपना अंतिम समय बिताने लगा।
वह रोज भगवान से क्षमा माँगता, लेकिन क्या उसका पश्चाताप उसके पापों को धो सकता था? यह तो सिर्फ समय ही बता सकता था...
सुनीता गुप्ता
hema mohril
26-Mar-2025 05:03 AM
v nice
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